About KVK

About KVK

कृषि विज्ञान केंद्र,मनावर  की स्थापना ICAR ने 2018 में  की थी।  वर्तमान में केवीके आरवीएसकेवीवी, ग्वालियर के अधिकार क्षेत्र में कार्य कर रहा है। वार्षिक औसत 828 मिमी के साथ जलवायु अर्ध-शुष्क है। वर्षा आम तौर पर असामान्य, अनिश्चित और किसानों के लिए समस्याएँ हैं। अधिकतम तापमान 45 C है जबकि न्यूनतम 7 C है। जनजातियों का मुख्य व्यवसाय कृषि है। केवीके राज्य के 11 वें कृषि-जलवायु क्षेत्र यानी झाबुआ हिल्स जोन में कार्य कर रहा है जिसमें मिट्टी मध्यम काली मिट्टी, दोमट मिट्टी, (लाल पीली मिट्टी), कंकाल मिट्टी है।
केवीके कार्य 
  • कृषक समुदाय द्वारा तकनीकी प्रशिक्षण एवं आवश्यकताओं की पहचान करने के लिए विशेष संदर्भ के साथ जिले के कृषि संसाधनों की सूची बनाना और उन्हें चिह्नित करना। 
  • प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों और अनुवर्ती विस्तार कार्यक्रमों में उनके सार्थक उपयोग के लिए रुपरेखा तैयार करना मुख्य बिंदु है। 
  • विभिन्न लक्षित समूहों के लिए जरूरत आधारित उत्पादन उन्मुख लघु और लंबी अवधि के प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों की योजना बनाना और उनका संचालन करना।
  • बेरोजगार ग्रामीण युवाओं और स्कूल छोड़ने वाले लोगों को व्यावसायिक प्रशिक्षण के दौरान सीखने और देखने के सिद्धांत पर विश्वास करना। 
  • गोद लिए गए गाँव और ग्रामीण स्कूलों में फार्म साइंस क्लब का आयोजन।
  • वैज्ञानिक तर्ज पर निर्देशात्मक खेत और प्रदर्शन इकाइयों का विकास और रखरखाव।
  • उनकी क्षमता और लाभप्रदता का पता लगाने के लिए स्थान विशेष की स्थितियों के लिए परीक्षण किए गए तकनीकों का प्रदर्शन और सिफारिश की गई है। कृषि विश्वविद्यालय और आईसीएआर अनुसंधान संस्थानों द्वारा विकसित स्थानीय प्रौद्योगिकियों के कृषि परीक्षण पर ध्यान केंद्रित करना और बाधाओं की पहचान करना।
केवीके की गतिविधियां
  • विभिन्न कृषि प्रणालियों में प्रौद्योगिकियों की स्थान विशिष्टता की पहचान करने के लिए कृषि परीक्षण करना। 
  • किसानों के खेतों पर नई जारी प्रौद्योगिकियों की उत्पादन क्षमता स्थापित करने और फीड बैक प्रदान करने के लिए फ्रंटलाइन प्रदर्शन।
  • किसानों और किसानों को आधुनिक कृषि प्रौद्योगिकियों में उनके ज्ञान और कौशल को अद्यतन करने और विस्तार कर्मियों के प्रशिक्षण को प्रौद्योगिकी विकास के प्रमुख क्षेत्रों में उन्मुख करने के लिए प्रशिक्षण।
  • जिले की कृषि अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए सार्वजनिक, निजी और स्वैच्छिक क्षेत्र की सहायता के लिए कृषि प्रौद्योगिकी के संसाधनों और ज्ञान केंद्र के रूप में कार्य करना।
  • बड़ी संख्या में विस्तार गतिविधियों जैसे कि किसान मेला, फील्ड दिवस, रणनीतिक अभियान, पूर्व प्रशिक्षुओं की बैठक आदि के माध्यम से सीमांत प्रौद्योगिकियों के बारे में जागरूकता पैदा करना।
  • केवीके द्वारा उत्पादित बीज और रोपण सामग्री भी किसानों को उपलब्ध कराई जाती है।


किसानों की प्रगति में सहायक हैं कृषि विज्ञान केन्द्र

कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) भारत में कृषि विस्तार केंद्र हैं। आमतौर पर एक स्थानीय कृषि विश्वविद्यालय के साथ जुड़े हुए ये केंद्र भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और किसानों के बीच अंतिम कड़ी के रूप में काम करते हैं। ये कृषि अनुसंधान परिणामों को व्यावहारिक  तौर पर स्थानीय संगठनों में लागू करने का लक्ष्य रखते हैं। सभी कृषि विज्ञान केंद्र पूरे भारत में 11 कृषि प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थानों (अटारी) के अधिकार क्षेत्र में आते हैं।

शिक्षा आयोग (वर्ष 1964-66) ने सिफारिश की थी कि बड़ी संख्या में युवाओं के प्रशिक्षण की जरूरतों को पूरा करने के लिए मैट्रिक के पूर्व और बाद के स्तरों पर कृषि और संबंद्ध क्षेत्रों में व्यावसायिक शिक्षा प्रदान करने के लिए विशेष संस्थानों की स्थापना के लिए एक जोरदार प्रयास किया जाए। आयोग ने आगे सुझाव दिया कि ऐसे संस्थानों को 'कृषि पॉलाटेक्निक' नाम दिया जाये। आयोग की सिफारिश पर पूरी तरह से चर्चा की गई। वर्ष 1966-72 के दौरान शिक्षा मंत्रालय, कृषि मंत्रालय, योजना आयोग, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (भाकृअनुप) और अन्य संबंद्ध संस्थानों द्वारा व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए कृषि विज्ञान केंद्रों को नवीन संस्थानों के रूप में स्थापित करने के विचार को लागू किया गया। कृषि शिक्षा पर भाकृअनुप स्थायी समिति ने अगस्त, 1973 में आयोजित अपनी बैठक में पाया कि कृषि विज्ञान केंद्रों की स्थापना राष्ट्रीय महत्व की थी, जो कृषि उत्पादन में तेजी लाने के साथ-साथ सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों को सुधारने में भी मदद करेगी। इस योजना को लागू करने में सभी संबंधित संस्थानों की सहायता ली जानी चाहिए। इसलिए भाकृअनुप ने वर्ष 1973 में डा. मोहन सिंह मेहता की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया।

पायलट आधार पर पहला कृषि विज्ञान केंद्र, वर्ष 1974 में तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय, कोयम्बतूर के प्रशासनिक नियंत्रण में पुड्‌डुचेरी (पांडिचेरी) में स्थापित किया गया था। वर्तमान में 713 कृषि विज्ञान केन्द्र हैं, जिनमें से 498 राज्य कृषि विश्वविद्यालयों (एसएयू) और केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालयों (सीएयू) के अंतर्गत हैं। 63 कृषि विज्ञान केन्द्र भाकृअनुप संस्थानों के अंतर्गत, 101 एनजीओ के अधीन, 38 राज्य सरकारों के अधीन और अन्य शैक्षणिक संस्थानों के अंतर्गत हैं। 

कृषि विज्ञान केन्द्र के उद्देश्य 

कृषि विज्ञान केन्द्र खेती, किसानों तथा ग्रामीण विकास के लिए प्रतिपल कार्यरत है। इनके निम्नलिखित उद्देश्य हैं:

  • नवीनतम कृषि प्रौद्योगिकी के विकास एवं उसके त्वरित विस्तार और अंगीकरण के बीच के समय अंतराल को कम करने की दृष्टि से किसानों के साथ सरकारी विभागों जैसे-कृषि/बागवानी/मत्स्य/पशु विज्ञान और गैर-सरकारी संगठनों के कार्यकर्ताओं के समक्ष प्रदर्शन का आयोजन।
  • किसानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति के अनुसार प्रौद्योगिकियों का परीक्षण और सत्यापन। उत्पादन की कमी और प्रौद्योगिकियों के यथोचित संशोधन के लिए दृष्टिगत अध्ययन।
  • किसानों/कृषक महिलाओं, ग्रामीण युवकों और प्रक्षेत्र स्तर पर कार्यरत  प्रसारकर्ताओं को 'क्रिया मूलक शिक्षण' और 'क्रिया मूलक ज्ञान' पद्धति से प्रशिक्षण प्रदान करना।
  • जिला स्तरीय विकास विभागों जैसे-कृषि/बागवानी/मत्स्य/पशु विज्ञान और गैर-सरकारी संगठनों और उनके प्रसार कार्यक्रमों को प्रशिक्षण कार्यों और संचार संसाधनों के साथ समर्थन देना।
कृषि विज्ञान केन्द्र, इस प्रकार कृषि शोध में खेत पर प्रशिक्षण, व्यावसायिक प्रशिक्षण और नवीनतम तकनीकों के हस्तान्तरण के साथ जिले में समग्र ग्रामीण विकास के लिये प्रतिब( आधार स्तर पर कार्य करने वाला अग्रणी संस्थान है। इसकी गतिविधियों में प्रौद्योगिकी मूल्यांकन, शोधन और हस्तान्तरण प्रमुख हैं। ये अनुसंधान संस्थानों और ग्रामीणों के बीच की दूरी को खत्म करने में सहयोग करते हैं। यह संस्था नई विकसित प्रौद्योगिकी उत्पादों आदि का प्रदर्शन और किसानों, ग्रामीण युवाओं तथा प्रसार-कर्मियों के बीच प्रशिक्षण के माध्यम से क्षेत्र स्तर पर अंगीकृत करने में सहायता प्रदान करती है।

कृषि विज्ञान केन्द्रों से किसानों को लाभ 

किसान भाई-बहन कृषि विज्ञान केन्द्रों से निम्नलिखित लाभ उठा सकते हैं: 

प्रशिक्षण 

कृषि विज्ञान केन्द्र किसानों एवं ग्रामीण युवाओं के लिये एक वर्ष में आवश्यकता के आधार पर 30-50 प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करते हैं। यह केन्द्र की सबसे महत्वपूर्ण क्रिया है। प्रशिक्षण, विशेषकर, उन लोगों के लिये आवश्यक है, जिन्होंने स्कूल छोड़ दिया है तथा बेरोजगार हैं। केन्द्र इन लोगों को स्वरोजगार के लिये मुर्गी पालन, बकरी पालन, डेरी और मत्स्य पालन का प्रशिक्षण देता है। महिलाओं को सशक्त करने के लिये गृह विज्ञान से संबंधित प्रशिक्षण जैसे-सिलाई, बुनाई, अचार बनाना, पापड़ बनाना आदि प्रशिक्षण दिया जाता है। 

खेत पर प्रशिक्षण 

कृषि विज्ञान केन्द्र के माध्यम से किसानों की खेती से संबंधित प्रमुख समस्याओं का उपचार किया जाता है। कृषि वैज्ञानिक, किसानों को बताते हैं कि कौन सा बीज उत्कृष्ट है और कौन सी तकनीक सर्वश्रेष्ठ है। इसमें तुलनात्मकता को स्थान दिया जाता है। यहां किसानों की भागीदारी अध्ययन का एक रूप है। 

अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन 

इसके माध्यम से केन्द्र के कृषि वैज्ञानिक किसानों को नई तकनीकों के बारे में बताते हैं। यहां उत्पादन की लागत को कम करने, कीट व रोगों को नियंत्रित करने, पैदावार को बढ़ाने तथा महिलाओं के परिश्रम को कम करने, कृषि औजार तथा नवीनतम प्रौद्योगिकी उपकरणों के उपयोग के बारे में बताया जाता है।

अन्य विस्तार गतिविधियां 

कृषि विज्ञान केन्द्र ही अन्य विस्तार गतिविधियों जैसे-किसान मेला, प्रक्षेत्र भ्रमण, किसान गाे, सेमिनार, कृषि प्रदशर्नी, साहित्य प्रकाशन, मोबाइल से वायस मैसेज आदि द्वारा किसानों को नवीनतम तकनीकी जानकारियां प्रदान कर उनकी कार्यक्षमता तथा कौशल को बढ़ाने का कार्य करते हैं। 

कृषि विज्ञान केंद्र का अधिदेश

कृषि विज्ञान केंद्र की अनिवार्यता प्रौद्योगिकी मूल्यांकन और इसके अनुप्रयोग तथा क्षमता विकास के लिए प्रदर्शन पर आधरित है। अध्दिेश को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए, प्रत्येक केवीके के लिए निम्नलिखित गतिविधियों की परिकल्पना की गई है। मूल्यांकन, परिष्करण और निरूपण के माध्यम से प्रौद्योगिक उत्पादों का अंगीकरण ही कृषि विज्ञान केन्द्र का प्रमुख अधिदेश है। इस लक्ष्य को प्रभावी ढंग से प्राप्त करने तथा किसानों के उन्नयन एवं विकास के लिए निम्नलिखित गतिविधियां प्रत्येक कृषि विज्ञान द्वारा संचालित की जाती हैं: 

  • कृषि प्रौद्योगिकियों की स्थानीय विशिष्टता की पहचान करने के लिये विभिन्न कृषि प्रणालियों का खेत पर परीक्षण
  • उत्पादन क्षमता प्रमाणन के लिए किसानों के खेतों पर अग्रिम प्रदर्शन
  • किसानों और प्रसार-कार्मिकों को आधुनिक कृषि प्रौद्योगिकी में अपने ज्ञान और  कौशल को अद्यतन करने के लिये प्रशिक्षण
  • जिले की कृषि अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए सार्वजनिक, निजी और स्वैच्छिक क्षेत्र की पहल के समर्थन से कृषि प्रौद्योगिकी के ज्ञान केन्द्र के रूप में कार्य करना।
  • प्रौद्योगिकी उत्पादों जैसे-बीज, रोपण सामग्री, जैविक घटकों, नवजात और  युवा पशुधन आदि को किसानों को उपलब्ध करवाया जाता है तथा उनका उत्पादन
  • कृषि और संबंद्ध क्षेत्राें में उन्नत कृषि प्रौद्योगिकियों के तेजी से वितरण और  तकनीक के अंगीकरण के लिये जागरूकता पैदा करने के लिए प्रसार गतिविधियों का आयोजन 

महत्वपूर्ण उपलब्धियां 

क्षमता विकास 

कृषि विज्ञान केन्द्रों ने अपने प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से कृषकों, कृषक महिलाओं तथा ग्रामीण युवक व युवतियों की क्षमता विकास करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इन केन्द्रों ने प्रसार कार्यकर्ताओं की क्षमता विकास के लिये इन-सर्विस प्रशिक्षण की सुविधा भी दी है, जिसके माध्यम से प्रसार कार्यकर्ता विभिन्न तकनीकियों के बारे में जानकारी हासिल करते हैं तथा उनका प्रयोग करते हैं। 

संपोषणीय विकास 

कृषि तकनीकों का खेत पर परीक्षण कर उनकी उपयोगिता का पता लगाया जाता है जैसे-मृदा तथा जल संरक्षण के लिये जैविक खाद तथा हरी खाद प्रयोग करने की सलाह कृषि वैज्ञानिकों की तरपफ से किसानों को दी जाती है। 

आय बढ़ाने हेतु प्रशिक्षण 

कृषि विज्ञान केन्द्रों द्वारा कृषकों, महिलाओं तथा युवाओं को आय बढ़ाने वाले विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण दिये जाते हैं। ये प्रशिक्षण उन्हें स्वावलंबी तथा सशक्त बनाते हैं और परिवार में निर्णयकर्ता के रूप में प्रदर्शित करते हैं। 

व्यापारिक विकास 

इसके द्वारा व्यावसायिक पफसलों जैसे-कपास, मशरूम, जूट आदि के उत्पादन पर जोर दिया जा रहा है। इनके माध्यम से किसान अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं।

भारतीय कृषि पर कृषि विज्ञान केन्द्रों का प्रभाव 

कृषि विज्ञान केन्द्रों ने भारतीय कृषि पर बहुत ही गहरा प्रभाव डाला है। इसकी आधुनिक तथा वैज्ञानिक गतिविधियों, प्रशिक्षण कायक्रमों, प्रदर्शनों और खेत पर परीक्षणों ने भारत को दलहनी फसलों तथा दुग्ध उत्पादन में प्रथम स्थान प्राप्त करने में सहयोग किया है।