चना- कटाई / संग्रहण

चना- कटाई / संग्रहण

कटाईमड़ाई एवं भण्डारण

चना की फसल की कटाई विभिन्न क्षेत्रों में जलवायु, तापमान, आर्द्रता एवं दानों में नमी के अनुसार विभिन्न समयों पर होती है।

  • व फली से दाना निकालकर दांत से काटा जाए और कट की आवाज आए, तब समझना चाहिए कि चना की फसल कटाई के लिए तैयार हैं
  • व चना के पौधों की पत्तियां हल्की पीली अथवा हल्की भूरी हो जाती है, या झड़ जाती है तब फसल की कआई करना चाहिये।
  • व फसल के अधिक पककर सूख जाने से कटाई के समय फलियाँ टूटकर खेत में गिरने लगती है, जिससे काफी नुकसान होता है। समय से पहले कटाई करने से अधिक आर्द्रता की स्थिति में अंकुरण क्षमता पर प्रभाव पड़ता है। काटी गयी फसल को एक स्थान पर इकट्ठा करके खलिहान में 4-5 दिनों तक सुखाकर मड़ाई की जाती है।
  • व मड़ाई थ्रेसर से या फिर बैलों या ट्रैक्टर को पौधों के ऊपर चलाकर की जाती है।

टूटे-फूटे, सिकुडत्रे दाने वाले रोग ग्रसित बीज व खरपतवार भूसे और दानें का पंखों या प्राकृतिक हवा से अलग कर बोरों में भर कर रखे । भण्डारण से पूर्व बीजों को फैलाकर सुखाना चाहिये। भण्डारण के लिए चना के दानों में लगभग 10-12 प्रतिशत नमीं होनी घुन से चना को काफी क्षति पहुंचती है, अतः बन्द गोदामों या कुठलों आदि में चना का भण्डारण करना चाहिए। साबुतदानों की अपेक्षा दाल बनाकर भण्डारण करने पर घुन से क्षति कम होती है। साफ सुथरें नमी रहित भण्डारण ग्रह में जूट की बोरियाँ या लोहे की टंकियों में भरकर रखना चाहिये।