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संकलन
श्री दया राम चैहान (तकनीकी अधिकारी)
कृषि विज्ञान केन्द्र मनावर (राविसि कृषि विश्वविद्यालय ग्वालियर)
श्रोत- डा. चन्दन कुमार, वैज्ञानिक (पशुपालन उत्पादन एवं प्रबंधन)
कृषि विज्ञान केन्द्र झाबुआ (राविसि कृषि विश्वविद्यालय ग्वालियर)
आमतौर पर देखने में आया है कि देशी गाय व भैस अधिक उम्र की होने या ब्याने के अधिक समय के बाद भी गर्मी के लक्षण नहीं दिखाती। कुछ गायें तथा भैसें ब्याने के पश्चात काई महीने बाद गर्मी में आती है, जबकि ब्याने के 45 से 60 दिन के अन्दर गर्मी में आ जानी चाहिए। पशु का गर्मी में न आना या देरी से गर्मी में आना या बहुत से पशुओं में मद चक्र का पूर्ण अभाव होना आदि के कई कारण हो सकते है जैसे पशु की उम्र, शरीर भार, संतुलित आहार की कमी, हरे चारे की कमी, बीमारी, मौसम, शरीर में हारमोनों का असंतुलन, गर्मी के लक्षणों का ठीक से न पहचानना, अनुचित प्रबंधन आदि। इसमें संतुलित आहार तथा प्रजनन प्रबंधन उचित नहीं होना इस समस्या के मुख्य कारण है। इन पशुओं में करीब 30 प्रतिशत तो ऐसे होते है जिनकी जाँच करने पर बच्चेदानी एवं अन्य जनन अंग ठीक तो पाये जाते है परन्तु इनकी डिब ग्रंथियां कार्यशील नहीं होती है।
इन समस्याओं की रोगथाम के लिए मुख्यतः उपाय निम्नलिखित है -
आहार प्रबंधन - हमारे देश में पशुओं में गर्मी के लक्षण नहीं दिखाना या देरी से दिखाना व बांझपन होना इन सब का सबसे बड़ा कारण है कुपोषण अर्थात पशुओं के दाने चारे में शर्करा या कार्बोहाइडेट प्रोटीन ए वसा खनिज लवण तथा विटामिनों का असन्तुलित मात्रा होने के कारण ही कुपोषण जन्य रोग पैदा होते है। अर्थात पशु के आहार मैं पोषक तत्वों की कमी या पोषक तत्वों की उचित मात्रा तथा सही अनुपात में न होना मुख्य समस्या है। पशु आहार में प्रोटीन, खनिज पदार्थ और विटामिन ए व इ आदि कि कमी होने से प्रजनन संबंधी समस्यायें हो जाती है। इसलिए पशुपालक अपने पशुओं की बचपन से ही उचित देखभाल करे इसके लिए पशुपालक अपनी बछडी या कटडी को बचपन से ही संतुलित आहार जिसमें उचित मात्रा में प्रोटीन वं वसा के साथ साथ अवश्यक खनिज पदार्थ भी हों इसके लिए पशुपालक को (जिसमें एक दल वाले तथा दो दल वाले अर्थात दलहनी (फली वाले ) अदलहनी (गैर फली वाले ) हरे चारे का मिश्रण और दाने तथा उचित मात्रा में नमक हो अवश्य खिलाना चाहिए।
दाना मिश्रण- पशु के आहार में सुखे चारे तथा हरे चारे अवश्यक होना चाहिए केवल हरा चारा या केवल सूखा चारा नहीं देना चाहिए, कम से कम दो -तिहाई सूखा चारा तथा एक तिहाई हरा चारा होना चाहिए। जहॉ तक दाना की बात है तो कोई एक प्रकार का दाना या खली नही देना चाहिऐ बल्कि इनका मिश्रण होना चाहिए। यदि एक कुन्टल दाना तैयार करना है तो 20-30 किग्रा खली, 30-40 किग्रा चोकर, 15-25 किग्रा दलहनी फसलों के उपजात, 15-25 किग्रा अदलहनी फसलों के उत्पाद एवं 1 किग्रा नमक लेकर भली भाति मिश्रित कर लेना चाहिए। प्रौढ़ पशुओं को निर्वाह हेतु ऐसे मिश्रित दाने की 1 किलो मात्रा एवं अन्य कार्यो जैसे प्रजनन एवं गर्भ हेतु 1-1.50 किग्रा एवं दूध उत्पादन हेतु ढ़ाई से तीन किग्रा दूध पर 1 किग्रा दाना निर्वाहक आहार के अतिरिक्त देना चाहिए। परन्तु फिर भी इनमें से कुछ सूक्ष्म खनिज लवणों की कमी हो सकती है जिसके लिए खिनज मिश्रण का पाउडर जो बाजार में विभिन्न व्यापारिक नामों में उपलब्ध है, जिसको 30-40 ग्राम प्रतिदिन प्रति प्रौढ़ पशु को देना चाहिए। पशुओं के आहार में खिलाये जाने वाले विभिन्न चारो दानों, जैसे हड्डियों एवं मांस के चूर्ण में 15 से 64 प्रतिशत, दो दालिय सूखी घासों में 7 से 11 प्रतिशत, खली एवं भूसी में 5-7 प्रतिशत, भूसा में 4-5 प्रतिशत, आनाज में 1.5-3.0 प्रतिशत एवं हरे चारे तथा साइलेज में 1 से 3 प्रतिशत खनिज लवण पायें जाते हैं। अत किसानों आपने पशुओं को संतुलित आहार जिसमें 2 प्रतिशत खनिज लवन मिश्रण (मिनरल मिक्चर) मिला हो अवश्य देना चाहिये और जिन पशुओं को संतुलित आहार न दिया जाता हो उनको सनी में प्रतिदिन प्रति गाय भैस 40-50 ग्राम खनिज लवन मिश्रण एवं 30-40 ग्राम नमक अवश्य दिया जाना चाहिये, जिससे उनके पशु स्वस्थ्य, दुग्ध, उत्पादन में वृद्धि एवं समय से गर्मी पर आकर किसानों को आर्थिक लाभ पहुंचा सकते है।
पशु आहार में इन खनिज लवणों की कमी की अवस्था में बछडियों या कटडियों को 20 से 30 ग्राम तथा गाय भैस को 40 से 50 ग्राम प्रति दिन की दर से खनिज मिश्रण खिलाना चाहिए।
प्रजनन प्रबंधन - पशु प्रसव के उपरान्त जेर का निष्कासन (जेर डालना) प्रायः 8-12 घंटे के बीच नहीं हो तो तुरन्त योग्य पशु चिकित्सक द्वारा सलाह व जाँच करवानी चाहिए। अगर पशु के जेर का निष्कासन चिकित्सक के हाथों दवारा होता है तो पशु की बच्चेदानी में एन्टीवायोटिक दवा रखवा देनी चाहिए ताकि पशु के जननांगों में किसी प्रकार का संक्रमण होनो की संभावना न हो और पशु समय पर गर्मी के लक्षण दिखा सके।
जिन पशुओं की बच्चेदानी एवं अन्य अंग ठीक होते है किन्तु इनकी डिब ग्रंथियां कार्यशील नहीं होती। ऐसे पशुओं की डिब ग्रंथियों की यदि एक या दो बार पशुचिकित्सक से हल्की मालिश करवाई जाये तथा बच्चेदानी के मंुह पर लुगोल-आयोडीन का लेप लगवाया जाये तो इनकी डिब ग्रंथियां पुनः कार्यरत हो सकती है।
मदकाल तालमेल या मदकाल समक्रमण विधि- मदचक्र का एक कोशलपूर्ण फेरबदल है, जिसमें सभी मादा जानवर एक साथ मदकाल में सकते है। राष्ट्रीय डेरी अनुसंधान संस्थान में भैसों पर एक नवीन मदकाल समक्रमण प्रोटोकाल विकसित की गई थी, इसके लिए तीन इंजेक्शन जी एन आर एच (ळदत्भ्), पी जी एफ2 एल्फा (च्ळथ्2α), इस्ट्राडिओल बेनजुएट की आवश्यकता होती है।
प्रक्रिया - इस प्रोटोकोल में, भैसों को (जो समय पर या लम्बे समय तक मद में न आना / बार बार ग्यभिन करवाने पर भी गर्भित न हो) एक जी एन आर एच एनालाग (रेसेप्टाल, 10 माइक्रो ग्राम अन्तः पेशीय) तथा उसके बाद पी जी एफ२ एल्फ (च्ळथ्2α) (ल्यूटालाइस, 25 मिली ग्राम अन्तः पेशीय) तथा इस्ट्राडिओल बेनजुएट (1 मिली ग्राम) का इंजेक्शन क्रमशः 7 वें 8 वें दिन लगाए जाते है। सभी पशुओं को इस्ट्राडिओल बेनजुएट इंजेक्शन लगाने के बाद 48 वें घंटे तथा 60 घंटे पर दो बार कृत्रिम गर्भाधान किया जाता है।
मदकाल तालमेल के लाभ
1. मदकाल तालमेल से सभी मादा जानवर एक साथ गर्मी मे आ जाती है जिससे ऋतुकाल की पहचान जल्दी हो जाती है ।
2. यह कृत्रिम गर्भधारण के लिए बहुत ही लाभकारी सिध्द होता है।
3. व्यवसायिक डेयरी फार्म में जानवरों का उचित प्रबंधन आसान हो जाता है तथा मजदूरी के साथ साथ समय की भी बचत हो जाती है। इस विधि से जानवरों की आयु तथा उत्पादन क्षमता बढ जाती है। मदकाल तालमेल के द्वारा हम लोग गायों के ब्यात मध्यकाल को कम कर सकते है तथा ज्यादा से ज्यादा दूध प्राप्त कर सकते है तथा खाने पीने का खर्चा भी कम कर सकते है। यदि पशुपालक गायों के हीट (ऋतुकाल) को नहीं पहचान पाता है तो उन गायों को दुबारा गर्मी में आने में 21 दिन का समय लगता है जिससे पशुपालक को बिना दूध उत्पादन के ही खान पान का खर्चा उठाना पडता है।
4. इस विधि को आपनाने से कृत्रिम गर्भधारण सुलभ हो जाता है तथा प्रजनन काल को भी अपने अनुसार आगे पीछे कर सकते है।
5. मदकाल तालमेल तथा कृत्रिम गर्भधारण के द्वारा गायों की आनुवशिक क्षमता को भी बढाया जा सकता है।
6. इस विधि से एक तरह या एक सामान (रंग, वजन, प्रकार) बछडा या बछडी प्राप्त किया जा सकता है तथा बछडें की कार्य क्षमता तथा वजन को बढाया जा सकता है।
7. मदकाल तालमेल के द्वारा ऋतुकाल की पहचान की दर 75 प्रतिशत तक तथा गर्भधारण की दर 65 प्रतिशत तक की जा सकती है
इनके अलावा पशुपालक को गर्मी के लक्षणों का पता लगाने व उचित प्रबंध करने में अधिक ध्यान देना चाहिए। गर्मी के मौसम में अधिक तापमान होने के कारण प्रजनन क्षमता कम हो जाती है जिसके कारण मुख्यतः भैसों में मद अवस्था तथा मद के लक्षण में भी कमी आ जाती है। इसलिए पशुपालक को गर्मी के मौसम में गर्मी से बचने के उपाय करने चाहिए तथा उचित प्रबंधन करना चाहिए ताकि अपने दुधारू पशुओं से अधिक से अधिक लाभ ले सके।