चना- रोग एवं कीट प्रबंधन

चना- रोग एवं कीट प्रबंधन



पौध संरक्षण 

कीट नियंत्रण-

चना फसल का मुख्य कीट चने की इल्ली (हेलिकोवर्पा आर्मीजेरा) है। यह कीट कोमल पत्तियो, फूल तथा फलियो मे छेद कर दाने खाता है। इस कीट के प्रकोप को निम्न प्रकार से एकीकृत कीट प्रबंधन से रोका जा सकता है।
1.      खेत मे प्रकाश प्रपंच एवं फेरोमेन प्रपंच (5 प्रति हैक्टयर) लगावे। खेत मे पक्षियो के बैठने हेतु अंग्रेजी अक्षर टी आकार की 50 खूटियाॅ प्रति हैक्टयर के हिसाब से समान अंतर पर गाडे।
2.      चने की बुवाई समय पर 15 अक्टुबर से 15 नवम्बर तक करे।
3.      कीट प्रतिरोधी या सहनशील किस्मे जैसे जे.जी. -130,  जे.जी.- 315 बोये।
4.      अन्तरवर्ती फसल के रूप मे सरसो, अलसी लगाये।  अन्तरवर्ती फसल लगाने से न केवल चना भेदक का प्रकोप कम होता है बल्कि उकठा रोग के प्रकोप मे भी कमी आती है।
5.      गेदा के पौधे बीच मे लगाने से इल्ली का प्रकोप कम होता है। गेंदे में फुल खिला रहा हो तो चना भेदक कीट चने की फसल में कम जबकि गेदें के फूलों में अधिक अंडा देते है।
6.      खेत के खरपतवार नष्ट करे तथा गर्मी मे गहरी जुताई करे।
7.      जैविक नियंत्रण के रूप मे एन.पी.वी. विषाणु 250 एल.ई प्रति हैक्टयर की दर से छिडकाव करे।
8.      रासायनिक कीट नियंत्रण के लिए इन्डोक्साकार्ब 500 ग्राम प्रति है. या प्रोफेनोफाॅस ़ साइपरमेथ्रिन 1.0 लीटर प्रति है.या रेनेक्सीपायर 20 एस.सी. (0.10 ली./है.) की दर से उपयोग करे।

रोग एवं नियंत्रण-

चने मे  उकटा रोग का प्रकोप मुख्य रूप से होता है। इस रोग मे पौधे मुरझाा कर सूख जाते है। चने मे इसके अलावा काॅलर राॅट, जड सडन आदि रोग भी आते है। इन रोगो का नियंत्रण इस प्रकार से कर सकते है।
1.      गर्मी मे खेत की गहरी जुताई करे
2.      रोग रोधी किस्मो का चयन
3.      भूमि उपचार हेतु 3 किग्रा प्रति हैक्टयर की दर से ट्राइकोडर्मा विरिडी को गोबर की खाद मे मिलाकर 15-20 दिन तक रखे एवं उचित नमी होने पर खेत मे मिलाये।
4.      चने की बुवाई समय पर 15 अक्टुबर से 15 नवम्बर तक करे।
5.      बोवनी से पहले बीज को 2 ग्राम थाइरम एवं 1 ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति किग्रा. बीज की दर से उपचाारित करना चाहिये।
6.      रोग का प्रकोप होन पर डायथेन एम 45 का 0.3 प्रतिशत धोल तैयार कर छिडकाव करे।