बकरी- प्रजाति

बकरी- प्रजाति

 बकरी पालन



        बकरी पालन पौराणिक समय से ही पशुपालन का एक अभिन्न अंग रहा है। भूमिहीन कृषि श्रमिक, छोटे सीमांत किसान तथा सामाजिक एवं आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों में बकरी पालन की लोकप्रियता अत्यधिक है। बहुउद्देशीय उपयोगिता एवं सरल प्रबंधन पशुपालकों में बकरी पालन की ओर बढ़ते रुझान के प्रमुख कारण हैं। भारत में बकरियों की संख्या 1351.7 लाख है, जिसमें से अधिकांश (95.5 प्रतिशत) ग्रामीण क्षेत्रों में हैं। केवल अल्प भाग (4.5 प्रतिशत) ही शहरी क्षेत्रों में है। भारत में होने वाले कुल दुग्ध और मांस उत्पादन में बकरी का उत्कृष्ट योगदान है। बकरी का दूध और मांस का भारत में उत्पादित कुल दुग्ध और मांस में क्रमशः 3 प्रतिशत (46.7 लाख टन) और 13 प्रतिशत (9.4 लाख टन) हिस्सा है। ये आंकड़े स्पष्ट रूप से भारतीय समाज में बकरी पालन के व्यवसाय के महत्व को प्रमाणित करते हैं।बकरी पालन व्यवसाय से लाभ कमाने के लिए बकरियों में पोषण, स्वास्थ्य एवं पज्रनन पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। वज्ञैानिक तरीकों को अपनाकर बकरी पालन से अधिक लाभ कमाया जा सकता है।

बकरी की नस्ल का चयन

व्यावसायिक बकरी पालन आरंभ करते समय बकरी की नस्ल का चयन एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। बकरी प्रजाति का चयन, बकरी पालन का उद्देश्य, क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति, जलवायु, उपलब्ध चारा-दाना बाजार मांग पर निर्भर करता है। सामान्यतः यह ध्यान देना चाहिए कि बकरी की नस्ल उसी जलवायु से हो जहां व्यवसाय शुरू करना है। बकरी पालन के लिए अच्छी नस्ल के प्रजनक बकरे बाहर से लाकर स्थानीय बकरियों से गर्भाधान कर नस्ल सुधार का कार्य किया जा सकता है। प्रायः देखा गया है कि जो बकरी अधिक मेमने देती है, उसके मेमने कम वजन के होते हैं। दूसरी ओर जो बकरी कम मेमने देती है उसके मेमने बड़े तथा अधिक वजन वाले होते हैं। इस प्रकार सभी प्रजातियां लगभग समान लाभ देती हैं।

प्रजनक बकरों का चयन

बकरे के जनक शुद्ध नस्ल के रहे हों तथा स्वयं भी शारीरिक रूप से स्वस्थ हों। बकरा किसी आनुवंशिक रोग से ग्रसित न हो एवं उसका वाहक भी न हो। जनक उच्च प्रजनन क्षमता वाले रहे हों। इनकी सन्तानों में मृत्युदर का स्तर कम रहा हो। जनक में दूध, मांस या रेशे की उत्पादक क्षमता उच्च स्तरीय रही हो। बकरे में पूर्ण रूप से विकसित जननांग हों एवं उसकी प्रजनन क्षमता भी उच्च स्तरीय हो। वह विभिन्न उम्र सोपानों (जन्म, तीन माह, छह माह, नौ माह और बारह माह) पर अधिक भारधारक रहा हो। बकरा देखने में आकर्षक एवं क्षमतावान होना चाहिए।

बकरियों में जनन प्रबंधन

बकरी पालन व्यवसाय को सपफल बनाने के लिए बकरियों में निम्न गुणों का पाया जाना आवश्यक है :

  • बकरी कम आयु में जनन योग्य हो जाए।
  • बकरी प्रति ब्यांत अधिक बच्चे दे।
  • बकरी ब्याने के बाद जल्दी पुनः गर्भधारण कर ले।
  • बकरी के जीवनकाल में अधिकाधिक बच्चे पैदा हों।

बकरियों में परिपक्व होने की आयु उनकी नस्लआकारखानपान व देखभाल पर निर्भर करती है। प्रायः आठ से बारह माह में गर्मी के लक्षण प्रकट करने लगती हैं। इनको इस आयु से दो-तीन महीने देर से गर्भित कराना उचित रहता हैताकि जननतंत्र पूर्ण रूप से विकसित हो सके। इनका मदचक्र लगभग 18-21 दिनों का होता है और बकरियां लगभग 12-36 घंटे तक मदकाल में रहती हैं। गर्मी आने के 12 से 18 घंटे के बाद उनको गर्भित कराना चाहिए। अप्रैल-मई तथा अक्टूबर-नवंबर में गाभिन कराने पर मेमने अनुकूल मौसम में प्राप्त होते हैं।

बकरी आवास प्रबंधन

बकरी के आवास की लंबाई वाली भुजा पूर्व-पश्चिम दिशा में होनी चाहिए। लंबाई वाली दीवार को एक से डेढ़ मीटर ऊंचा बनवाने के पश्चात दोनों तरफ जाली लगानी चाहिए। बाड़े का फर्श कच्चा तथा रेतीला होना चाहिए। उसमें समय-समय पर बिना बुझे चूने का छिड़काव करते रहना चाहिए। वर्ष में एक से दो बार बाड़े की मिट्‌टी बदल देनी चाहिए। 80 से 100 बकरियों के लिए बाड़ा 20 × 6 वर्ग मीटर ढका हुआ तथा 12 × 20 वर्ग मीटर खुला जालीदार क्षेत्र होना चाहिए। बकरा, बकरी तथा मेमनों को (ब्याने के एक सप्ताह बाद) अलग-अलग बाड़ों में रखना चाहिए। मेमनों को बकरी के पास दूध पिलाने के समय ही लाना चाहिए। अधिक सर्दी, गर्मी व बरसात में बकरियों के बचाव का व्यापक रूप से प्रबंध करना चाहिए।

बकरी पोषण प्रबंधन

बकरी को प्रतिदिन उसके भार का 3-5 प्रतिशत शुष्क आहार खिलाना चाहिए। एक वयस्क बकरी को 1-3 कि.ग्रा. हरा चारा, 500 ग्राम से 1 कि.ग्रा. भूसा (यदि दलहनी हो तो और अच्छा है) तथा 150 ग्राम से 400 ग्राम तक दाना प्रतिदिन खिलाना चाहिए। दाना हमेशा दला हुआ व सूखा ही दिया जाना चाहिए और उसमें पानी नहीं मिलाना चाहिए। साबुत अनाज नहीं खिलाना चाहिए। दाने में 60-65 प्रतिशत अनाज (दला हुआ) 10-15 प्रतिशत चोकर, 15-20 प्रतिशत खली (सरसों की खली छोड़कर), 2 प्रतिशत मिनरल मिक्स्चर तथा एक प्रतिशत नमक का मिश्रण होना चाहिए। बकरियों को प्रजनन काल के एक माह पूर्व से ही पचास से सौ ग्राम तक दाना अवश्य देना चाहिए, जिससे स्वस्थ बकरी से अधिक मेमने पैदा हो सकें। इसी प्रकार बकरों को भी प्रजनन काल के दौरान प्रतिदिन सौ ग्राम दाना अतिरिक्त मात्रा में देना चाहिए। बकरियों को साफ पानी पिलाना चाहिए। नदी, तालाब व गड्‌ढे में जमा हुए गन्दे पानी को पीने से बकरियों को बचाना चाहिए।

स्वास्थ्य प्रबंधन

बकरी पालन की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि बकरियां स्वस्थ तथा निरोगी रहें। यदि वे अस्वस्थ या बीमार हो जाएंतो उनके रोग को पहचान कर तत्काल उपचार करें। इससे बकरियों को मृत्यु से बचाकर आर्थिक हानि से बचा जा सकता है। बकरियों में पी.पी.आर.ई.टी.खुरपकामुंहपकागलघोंटू तथा बकरी चेचक रोगों के टीके अवश्य लगवाने चाहिए। कोई भी टीका 3-4 माह की आयु के उपरांत ही लगाया जाता है। इसलिए बरसात आते ही इन्हें रोगों से बचाने के लिए यथासंभव प्रयास करना चाहिए। ये सभी रोग बहुत तेजी से फैलते हैं। इन रोगों के लक्षण देखते ही यथाशीघ्र उपचार के उपाय करने चाहिए। इन रोगों का देसी इलाज भी प्रभावी होता है। पशु चिकित्सक को दिखाकर उपचार कराया जा सकता है। बीमार बकरी को तुरंत बाड़े से अलग करके चिकित्सा करानी चाहिए। ठीक होने पर बाड़े में पुनः लाना चाहिए। अंतःपरजीवी नाशक दवा वर्ष में दो बार पिलानी चाहिए (एक वर्षा से पूर्व दोबारा वर्षा के उपरांत)। बाह्‌य परजीवीनाशक दवा के पानी से सावधानीपूर्वक बकरियों को स्नान कराने से परजीवी मर जाते हैं।

मेमनों का प्रबंधन

जन्म के उपरांत सर्वप्रथम नवजात मेमने के नथुनों को साफ कर उसे सामान्य रूप से सांस लेने में मदद करनी चाहिए। जन्म के पश्चात मेमने को उसकी मां के साथ रहने के लिए पहले से तैयार बाड़े में स्थानान्तरित कर देना चाहिए। मेमनों को सूखी-मुलायम घास की बिछावन वाले स्थान पर रखना चाहिए। बकरी ब्याने पर बच्चे की नाल दो इंच छोड़कर नये ब्लेड से काटकर टिंचर आयोडिन लगा देना चाहिए। नवजात मेमने को 30 मिनट के अंदर बकरी का पहला दूध (खीस) पिला देना चाहिए। दूध दो बार मेमनों को पिलाना अति उत्तम है। मेमनों को जन्म के पन्द्रह से बीस दिनों के अंदर सींग रहित कर सकते हैं। उपरोक्त दिये गए बिन्दुओं पर ध्यान देकर बकरीपालक अधिक आमदनी प्राप्त कर सकते हैं तथा बकरियों को स्वस्थ एवं रोगमुक्त रखकर अधिक मेमने भी प्राप्त कर सकते हैं।